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________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह २८७ हैं और फिर दोनों एक ही साथ मर कर स्वर्ग में चले जाते हैं। युगलिये बड़े भद्रिक (भोले) होते हैं । वे धर्म कर्म में कुछ नहीं समझते वैसे ही पाप कर्म में भी कुछ नहीं समझते । इसी भद्रिकपने (सरलता) के कारण वे मर कर स्वर्ग में जाते हैं। नरक आदि अन्य गतियों में नहीं, किन्तु हरि नामक युगलिये ने बहुत वर्षों तक राज्य किया। पशु पक्षियों के मांस भक्षण के कारण हरि और हरिणी दोनों युगलिये मर कर नरक में गये और उनके पीछे उनके नाम से हरिवंश परम्परा चली। अतः यह भी एक अच्छेरा माना जाता है। (८) चमरोत्पात- चमरेन्द्र अर्थात् असुरकुमार देवों के इन्द्र का उत्पात अर्थात् ऊर्ध्वगमन चमरोत्पात कहलाता है । इस के लिए ऐसा विवरण मिलता है इस भरतक्षेत्र में विभेल नामक नगर के अन्दर पूरण नाम का एक धनाढ्य सेठ रहता था। उसको एक समय रात्रि में ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि पूर्व भव में किये गये पुण्य के प्रभाव से तो यह सारी सम्पत्ति और यह प्रतिष्ठा मिली है। आगामी भव में मुझे इससे भी ज्यादा ऋद्धि सम्पत्ति प्राप्त हो, इसलिए मुझे तप करना चाहिए। ऐसा विचार कर प्रातः काल अपने कुटुम्बियों से पूछ कर और पुत्र को घर का सारा भार सम्भला कर तापस व्रत ग्रहण कर लिया और प्राणायाम नामक तप करने लगा। प्राणायाम तप का आचरण इस प्रकार करने लगा, वह बेले बेले पारणा करता था और पारणे के दिन काठ का बना हुआ चतुष्पुट पात्र (एक पात्र जिस में चार हिस्से बने हुए हों) लेकर मध्याह्न (दोपहर) के समय भिक्षा के लिए जाता था। जो कुछ भिक्षा मिलती थी उसके चार हिस्से करता था यानी पात्र के प्रथम हिस्से (पुट) में जो भिक्षा आती वह पथिकों (मुसाफिरों)
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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