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________________ २८६ श्री सेठिया जैन प्रन्धमाला अब मुझे अपने पूर्व भव के वैर का बदला लेना चाहिए। किन्तु यहाँ तो ये अकाल में मारे नहीं जा सकते क्योंकि युगलियों की आयु अनपवर्त्य ( अपनी स्थिति से पहले नहीं टूटने वाली) होती है और यहाँ मरने पर ये अवश्य स्वर्ग में जावेंगे। इस लिए इनको यहाँ से उठा कर किसी दूसरी जगह ले जाना चाहिए। ऐसा सोच कर वह देव उन दोनों को कल्पवृक्ष के साथ उठा कर जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की चम्पापुरी में ले आया। उस नगरी का इक्ष्वाकु वंशोद्भव चन्द्रकीर्ति नामक राजा उसी समय मर गया था। उसके कोई सन्तान न थी। अतः प्रजा अपने लिए किसी योग्य राजा की खोज में थी। इतने में आकाश में स्थित हो कर उस देव ने कहा कि हे प्रजाजनो ! मैं तुम्हारे लिए हरिवर्ष क्षेत्र से हरि नामक युगलिये को उस की पत्नी हरिणी तथा उन दोनों के खाने योग्य फलों से युक्त कल्पवृक्ष के साथ यहाँ ले आया हूँ। तुम इसे अपना राजा बना लो और इन दोनों को कल्पवृक्ष के फलों में पशु पक्षियों का मांस मिलाकर खिलाते रहना। प्रजाजनों ने देव की इस बात को मान लिया और उसे अपना राजा बना दिया । देव अपनी शक्ति से उन दोनों को अल्प स्थिति और सो धनुष प्रमाण शरीर की अवगाहना रख कर अपने स्थान को चला गया। ___ हरि युगलिया भी समुद्र पर्यन्त पृथ्वी को अपने अधीन कर बहुत वर्षों तक राज्य करता रहा और उसके पीछे पुत्र पौत्रादि रूप से उसकी वंश परम्परा चली और तभी से वह वंश हरिवंशकहलाया। युगलियों की वंश परम्परा नहीं चलती | क्योंकि वे युगल रूप से उत्पन्न होते हैं और उन ही दोनों में J पति पत्नी का व्यवहार हो जाता है। कल्पवृक्षों से यथेष्ट फलादि को प्राप्त करते हुए बहुत समय तक सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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