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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह २८३ nahuaAAA - अपनी सेना की यह दशा देख कर पद्मनाभ राजा रणभूमि से भाग गया । अपनी नगरी में घुस कर शहर के सब दरवाजे बन्द करवा दिये। यह देख कृष्ण वासुदेव अति कुपित हुए और जोर से पृथ्वी पर ऐसा पादस्फालन (पैरों को जोर से पदकना)किया जिससे सारा नगर कम्पित हो गया। शहर का कोट और दरवाजे तथा राज महल आदि सब धराशायी हो गये। यह देख कर पद्मनाभ राजा अति भयभीत हुआ और द्रौपदी के पास जाकर कहने लगा कि हे देवि ! मेरे अपराध को क्षमा करो और अब कुपित हुए इन कृष्ण वासुदेव से मेरी रक्षा करो । तब द्रौपदी ने कहा कि त स्त्री के कपड़े पहन कर और मुझे आगे रख कर कृष्ण वासुदेव की शरण में चला जा।तब ही तेरी रक्षा हो सकती है। पद्मनाभ राजा ने ऐसा ही किया। फिर द्रौपदी और पांचों पाण्डवों को साथ लेकर कृष्ण वासुदेव वापिस लौट कर लवण समुद्र के किनारे आये। ___उस समय धातकी खण्ड में चम्पापुरी के अन्दर कपिल नाम का वासुदेव तीर्थङ्कर भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी के पास धर्म श्रवण कर रहा था। पद्मनाभ राजा के साथ युद्ध में कृष्ण वासुदेव द्वारा की गई शंखध्वनि को सुन कर कपिल वासुदेव ने मुनिसुव्रत स्वामी से पूछा कि हे भगवन् ! मेरे जैसा ही यह शंख का शब्द किसका है ? तब भगवान् ने द्रौपदी का सारा वृत्तान्त कह सुनाया। यह सुन कपिल वासुदेव कहने लगा कि हे भगवन् । में जाता हूँ और जम्बूद्वीप के भरतार्द्ध के स्वामी कृष्ण वासुदेव को देखेंगा और उनका स्वागत करूँगा। तब भगवान् ने कहा कि हे कपिल वासुदेव ! जिस तरह एक तीर्थङ्कर दूसरे तीर्थङ्कर को और एक चक्रवर्ती दूसरे चक्रवर्ती को नहीं देख सकता । उसी प्रकार एक वासुदेव दूसरे वासुदेव को नहीं -
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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