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________________ २८२ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला कृष्ण वासुदेव को बड़ी चिन्ता हुई । इतने में वहाँ पर नारद मुनि आगये। कृष्ण महाराज ने उनसे पूछा कि हे आर्य! यथेष्ट प्रदेशों में घूमते हुए आपने कहीं पर द्रौपदी को देखा है ? तब ... नारद मुनि ने कहा कि धातकीरखण्ड की अपरकका नाम की नगरी ' में पद्मनाभ राजा के यहाँ मैंने द्रौपदी को देखा है. ऐसा कहकर नारद मुनि तो वहाँ से चले गये। तब कृष्ण महाराज ने पाण्डवों से कहा कि तुम कुछ भी फिक्र मत करो। मैं द्रौपदी को यहाँ ले .. आऊँगा। फिर पाँचों पाण्डवों को साथ लेकर कृष्ण महाराज लवण । समुद्र के दक्षिण तट पर आये। वहाँ अष्टमतप (तेला) करके लवण समुद्र के स्वामी सुस्थित नामक देव की आराधना की। सुस्थित देव वहाँ उपस्थित हुआ। उसकी सहायता से पांचों पाण्डवों सहित कृष्ण वासुदेव दो लाख योजन प्रमाण लवण समुद्र को पार कर अपरकंका नगरी के बाहर एक उद्यान (बगीचे) .. में आकर ठहरे। वहाँ से पद्मनाभ राजा के पास दारूक नामक दत भेज कर कहलवाया कि कृष्ण वासुदेव पाचों पाण्डवों सहित यहाँ आये हुए हैं, अतः द्रौपदी को ले जाकर पाण्डवों को सौंप दो। दत ने जाकर पद्मनाभ राजा से ऐसा ही कहा । उत्तर में उसने कहा कि इस तरह मांगने से द्रौपदी नहीं मिलती। अतः अपने स्वामी से कह दो कि यदि तुम में ताकत है तो युद्ध करकेद्रोपदी को ले सकते हो ! मैं ससैन्य युद्ध के लिए तय्यार हूँ। दत ने जाकर सारा वृत्तान्त कृष्ण वासुदेव से कह दिया। इसके बाद सेना सहित आते हुए पद्मनाभ राजा को देख कर कृष्ण वासुदेव ने इतने जोर से शंख की ध्वनि की जिससे पद्मनाभ राजा की सेना का तीसरा हिस्सा तो उस शंखध्वनि को मुन कर भाग गया। फिर कृष्ण वासुदेव ने अपना धनुष उठाकर ऐसी टंकार मारी जिससे उसकी सेना का दो तिहाई हिस्सा और भाग गया।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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