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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह १९१ ream (७) दण्डायए- लम्बे डण्डे की तरह भूमि पर लेट कर तप आदि करना। (E) लगण्डशायी- जिस आसन में पैरों की दोनों एड़ियाँ और सिर पृथ्वी पर लगे, बाकी को शरीर पृथ्वी से ऊपर उठा रहे वह लगण्ड आसन कहलाता है, अथवा सिर्फ पीठ का भाग पृथ्वी पर रहे बाकी सारा शरीर (सिर और पैर आदि) जमीन से ऊपर रहें उसे लगण्ड आसन कहते हैं। इस प्रकार के आसन से तप आदि करना। (8) आयावए (आतापक)- शीतकाल में शीत में बैठ कर और उष्ण काल में सूर्य की प्रचण्ड गरमी में बैठकर आतापना लेना। आतापना के तीन भेद हैं-निष्पन्न, अनिष्पन्न, ऊर्ध्वस्थित। निष्पन्न अर्थात् लेट कर ली जाने वाली आतापना निष्पन्न आतापना कहलाती है । इसके तीन भेद हैंअधोमुखशायिता- नीचे की ओर मुख करके सोना । पार्श्वशायिता- पार्श्वभाग (पसवाड़े) से सोना । उत्तानशायिता- समचित्त ऊपर की तरफ मुख करके सोना। अनिष्पन्न अर्थात् बैठ कर आसन विशेष से आतापनालेना। इसके तीन भेद हैं__गोदोहिका- गाय दुहते हुए पुरुष का जो आसन होता है वह गोदोहिका आसन कहलाता है। इस प्रकार के आसन से बैठकर आतापना लेना। उत्कुटुकासनता- उक्कडु भासन से बैठ कर आतापना लेना। पर्यङ्कासनता- पलाठी मार कर बैठना। . ऊस्थित अर्थात् खड़े रह कर पातापना लेना। इसके भी तीन भेद हैंहस्ति शौण्डिका- हाथी के सूंड की तरह दोनों हाथों को नीचे
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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