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________________ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला ( ४ ) अरसाहार- नमक मिर्च आदि मसालों के बिना रसरहित आहार करना । (५) विरसाहार - जिनका रस चला गया हो ऐसे पुराने धान्य या भात आदि का आहार करना । ( ६ ) अन्ताहार - जघन्य अर्थात् जो आहार बहुत गरीब लोग करते हैं ऐसे चने चवीने आदि खाना । १९० (७) प्रान्ताहार - बचा हुआ आहार करना । (८) रूक्षाहार - बहुत रूखा सूखा आहार करना । कहीं कहीं तुच्छाहार पाठ है उसका अर्थ है तुच्छ सव रहित निःसार भोजन करना । (६) निर्विगय - तेल, गुड़, घी आदि विगयों से रहित आहार करना । रसपरित्याग के और भी अनेक भेद हो सकते हैं । यहाँ दिए गए हैं। ( उचाई, सूत्र १६ ) कायक्लेश के १३ भेद (१) ठाण द्वितिए (स्थानस्थितिक ) - कायोत्सर्ग करना । ( २ ) ठाणाइये ( स्थानातिग ) आसन विशेष से बैठ कर कायोत्सर्ग करना । (३) उक्कुडुयासणिए (उत्कुटुकासनिक ) - उकडु आसन से बैठना । (४) पडिमठाई (प्रतिमास्थायी) - एक मासिको पडिमा, दो मासिकी पडिमा आदि स्वीकार करके विचरना । (५) वीरासणिए (वीरासनिक) - सिंहासन अर्थात् कुर्सी पर बैठे हुए पुरुष के नीचे से कुर्सी निकाल लेने पर जो अवस्था रहती है वह वीरासन कहलाता है। ऐसे आसन से बैठना । (६) नेसज्जिए (नैवेधिक)- निषद्या ( आसन विशेष ) से भूमि पर बैठना ।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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