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________________ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला लोग चिन्ता मत कीजिए । मैं स्वयं जाकर शंखजी को बुला लाता हूँ ' यह कह कर वह वहाँ से निकला और श्रावस्ती के बीच से होता हुआ शंख श्रमणोपासक के घर पहुंचा। घर में प्रवेश करते ही उत्पला श्रमणोपासिका ने पोखली श्रमणोपासक को देखा। देख कर वह बहुत प्रसन्न हुई। अपने प्रासन से उठकर सात आठ कदम उनके सामने गई। पोखली श्रावक को वन्दना नमस्कार किया। उन्हें भासन पर बैठने के लिये उपनिमन्त्रित किया। श्रावक के बैठ जाने पर उसने विनय पूर्वक कहा- हे देवानुपिय ! कहिए! आपके पधारने का क्या भयोजन है ? पोखली श्रावक ने पूछा- देवानुप्रिये ! शंख श्रमणोपासक कहाँ हैं ? उत्पला ने उत्तर दिया- शंख श्रमणोपासक तो पौषधशाला में पोसा करके ब्रह्मचर्य आदि व्रत ले कर धर्म का आराधन कर रहे हैं। पोखली श्रमणोपासक पौषधशाला में शंख के पास आए। वहाँ आकर गमनागमन (ईर्यावहि) का प्रतिक्रमण किया । इसके बाद शंख श्रमणोपासक को वन्दना नमस्कार करके बोला, हे देवानुप्रिय! आपने जैसा कहा था, पर्याप्त प्रशन आदि तैयार करवा लिये गए हैं। हे देवानुप्रिय ! आइये ! वहाँ चलें और आहार करके पाक्षिक पौषध की आराधना तथा धर्म जागृति करें। इसके बाद शंख ने पोखली से कहा-- हे देवानुप्रिय ! मैंने पौषधशाला में पोसा ले लिया है। अतःमुझे अशनादि का सेवन करना नहीं कल्पता। मुझे तो विधिपूर्वक पोसे का पालन करना चाहिए। आप लोग अपनी इच्छानुसार उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम चारों प्रकार के आहार का सेवन करते हुए धर्म की जागरणा कीजिए। - इसके बाद पोखली पौषधशाला से बाहर निकला । नगरी
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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