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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला भी कर्मतत्त्व माना गया है परन्तु जैन दर्शन का कर्मवाद अनेक विशेषताओं से युक्त है । जैन दर्शन में कर्मतत्व का जो विस्तृत वर्णन और सूक्ष्म विश्लेषण है वह अन्य दर्शनों में सुलभ नहीं है । जड़ और चेतन जगत के विविध परिवर्तन सम्बन्धी सभी प्रश्नों का उत्तर हमें यहाँ मिलता है । भाग्य और पुरुषार्थ का यहाँ सुन्दर समन्वय है और विकास के लिए इसमें विशाल क्षेत्र है। कर्मवाद जीवन में आशा और स्फूर्ति का संचार करता है और उन्नति पथ पर चढ़ने के लिये अनुपम उत्साह भर देता है । कर्मवाद पर पूर्ण विश्वास होने के बाद जीवन से निराशा और आलस्य दूर हो जाते हैं। जीवन विशाल कर्मभूमि बन जाता है और सुख दुःख के झोंके आत्मा को विचलित नहीं कर सकते । ___ कर्म क्या है ? अात्मा के साथ कैसे कर्मबन्ध होता है और उसके कारण क्या हैं ? किस कारण से कर्म में कैसी शक्ति पैदा होती है ? कर्म अधिक से अधिक और कम से कम कितने समय तक आत्मा के साथ लगे रहते हैं ? आत्मा से सम्बद्ध होकर भी कर्म कितने काल तक फल नहीं देते ? विपाक का नियत समय बदल सकता है या नहीं ? यदि बदल सकता है तो उसके लिये कैसे आत्मपरिणाम आवश्यक हैं ? आत्मा कर्म का कर्ता और भोक्ता किस तरह है ? संक्लेश परिणाम से आकृष्ट होकर कर्मरज कैसे आत्मा के साथ लग जाती है और आत्मा वीर्य-शक्ति से किस प्रकार उसे हटा देता है ? विकासोन्मुख आत्मा जब परमात्म भाव प्रगट करने के लिये उत्सुक होता है तब उसके और कर्म के बीच कैसा अन्तर्द्वन्द्व होता है ? समर्थ आत्मा कर्मों को शक्तिशून्य करके किस प्रकार अपना प्रगति मार्ग निष्कण्टक बनाता है और आगे बढ़ते हुए कर्मों के पहाड़ को किस तरह चूर चूर कर देता है ? पूर्ण विकास के समीप
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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