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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (५) शम्बूकावर्त्ता - शङ्ख के आवर्त की तरह वृत्त ( गोल ) गति वाली गोचरी शम्बूकावर्त्ता गोचरी है । ( ६ ) गतप्रत्यागता — जिस गोचरी में साधु एक पंक्ति के घरों में गोचरी करता हुआ अन्त तक जाता है और लौटते समय दूसरी पंक्ति के घरों से गोचरी लेता है, उसे गतप्रत्यागता गोचरी कहते हैं। (ठाणांग ६ सूत्र ५१४) (उत्तराध्ययन अ० ३० गा० १६ ) (प्रवचनसारोद्वार प्र०भाग गा० ७४५) (धर्मसंग्रह ३ अधि०) ४४७ - प्रतिलेखना की विधि के छः भेद शास्त्रोक्त विधि से वस्त्रपात्रादि उपकरणों को उपयोगपूर्वक देखना प्रतिलेखना या पडिलेहरगा है। इसकी विधि के छःभेद हैं— ( १ ) उड्ं— उत्कटुक आसन से बैठ कर वस्त्र को तिर्छा और जमीन से ऊँचा रखते हुए प्रतिलेखना करनी चाहिये । (२) थिरं वस्त्र को मजबूती से स्थिर पकड़ना चाहिये । (३) अतुरियं - बिना उपयोग के जल्दी २ प्रतिलेखना नहीं करनी चाहिये । ( ४ ) पड़िलेहे वस्त्र के तीन भाग करके उसे दोनों तरफ अच्छी तरह देखना चाहिये । - (५) परफोडे - देखने के बाद जयरणा से खंखेरना ( धीरे २ भड़काना ) चाहिये | * (६) पमज्जिज्जा - बंखेरने के बाद वस्त्रादि पर लगे हुए जीव को हाथ में लेकर शोधना चाहिये । ( उत्तराध्ययन अध्ययन २६ गाथा २४ ) ४४८ - अप्रमाद प्रतिलेखना छः प्रमाद का त्याग कर उपयोगपूर्वक विधि से प्रतिलेखना करना अप्रमाद प्रतिलेखना है इसके छ: भेद हैं
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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