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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह naram .(६) भाव प्रत्यनीक-नायिकादि भावों के प्रतिकूल आचरण करने वाला भाव प्रत्यनीक है। ज्ञान,दर्शन और चारित्र के भेद से भाव प्रत्यनीक के तीन भेद हैं। ज्ञान,दर्शन औरचारित्र के विरुद्ध प्ररूपणा करना, इनमें दोष आदि दिखाना भाव प्रत्यनीकता है । (भगवती शतक ८ उद्देशा ८) ४४६-गोचरी के छः प्रकार जैसे गाय सभी प्रकार के तृणों को सामान्य रूप से चरती है उसी प्रकार साधु उत्तम,मध्यम तथा नीच कुलों में रागद्वेष रहित होकर विचरते हैं। शरीर को धर्मसाधन का अंग समझ कर उसका पालन करने के लिए आहार आदि लेते हैं। गाय की तरह उत्तम, मध्यम आदि का भेद न होने से मुनियों की भिक्षावृत्ति भी गोचरी कहलाती है। अभिग्रह विशेष से इसके छः भेद हैं(१) पेटा-जिस गोचरी में साधु ग्रामादि को सन्दूक की तरह चार कोणों में बांट कर बीच के घरों को छोड़ता हुआ चारों दिशाओं में समश्रेणी से विचरता है, वह पेटा कहलाती है। (२) अर्द्ध पेटा-उपरोक्त प्रकार से क्षेत्र को बांट कर केवल दो दिशाओं के घरों से भिक्षा लेना अर्ध पेटा गोचरी है। (३)गोमूत्रिका-जमीन पर पड़े हुए गोमूत्र के आकार सरीखी भिक्षा के क्षेत्र की कल्पना करके भिक्षा लेना गोमूत्रिका गोचरी है। इसमें साधु आमने सामने के घरों में पहले बाई पंक्ति में फिर दाहिनी पंक्ति में गोचरी करता है। इस क्रम से दोनों पंक्तियों के घरों से भिक्षा लेना गोमूत्रिका गोचरी है । (४) पतंग वीथिका-पतंगिये की गति के समान अनियमित रूप से गोचरी करना पतंग वीथिका गोचरी है।
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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