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________________ . . श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह अर्थाधिकार अध्ययन के प्रारम्भ से अन्त तक एक सरीखा रहता है किन्तु वक्तव्यता एक देश में नियत रहती है। यही अर्थाधिकार और वक्तव्यता में अन्तर है। (६) समवतार-स्व, पर और उभय में वस्तुओं के अन्तर्भाव का विचार समवतार कहलाता है। नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से भी उपक्रम के छः भेद हैं। ___ इनका विशेष विस्तार अनुयोगद्वार सूत्र से जानना चाहिये (मनुयोगद्वार सूत्र ७०) ४२८ -अवधिज्ञान के छः भेदः भव या क्षयोपशम से प्राप्त लब्धि के कारण रूपी द्रव्यों को विषय करने वाला अतीन्द्रिय ज्ञान अवधि ज्ञान कहलाता है। इसके छः भेद हैं:(१) अनुगामी-जो अवधिज्ञान नेत्र की तरह ज्ञानी का अनुगमन करता है अर्थात् उत्पत्ति स्थान को छोड़कर ज्ञानी के देशान्तर जाने पर भी साथ रहता है वह अनुगामी अवधिज्ञान है। (२) अननुगामी–जो अवधिज्ञान स्थिर प्रदीप की तरह ज्ञानी का अनुसरण नहीं करता अर्थात् उत्पत्तिस्थान को छोड़ कर ज्ञानी के दूसरी जगह चले जाने पर नहीं रहता वह अननुगामी अवधिज्ञान है। (३) वर्धमान-जैसे अग्नि की ज्वाला ईंधन पाने पर उत्तरोत्तर अधिकाधिक बढ़ती है उसी प्रकार जो अवधिज्ञान शुभ अध्यवसाय होने पर अपनी पूर्वावस्था से उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है वह वर्धमान अवधिज्ञान है।
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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