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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला सरल हो जाता है अर्थात् उसे आसानी से समझा जा सकता है । शास्त्ररूपी नगर में प्रवेश करने के द्वारों को अनुयोग द्वार कहते हैं। सूत्र के अनुकूल अर्थ का योग अर्थात् सम्बन्ध अनुयोग है अथवा प्रत्येक अध्ययन का अर्थ करने की विधि को अनुयोग कहते हैं। इसके चार भेद हैं— उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय । (१) इधर उधर बिखरे हुए वस्तु तत्त्व को विभिन्न प्रकार से प्रतिपादन करके समीप में लाना और निक्षेप के योग्य बनाना उपक्रम है । जिस वस्तु का नामोपक्रम आदि भेदों के अनुसार उपक्रम नहीं किया जाता उसका निक्षेप नहीं हो सकता । अथवा जिसके द्वारा गुरु की वाणी निक्षेप के योग्य बनाई जा सके उसे उपक्रम कहते हैं । अथवा शिष्य के सुनने के लिए तैयार होने पर जो वस्तुतत्त्व प्रारम्भ किया जाता है उसे उपक्रम कहते हैं । अथवा शिष्य द्वारा विनयपूर्वक पूछने पर जो बात शुरू की जाय वह उपक्रम है । इसके छ: भेद हैं : २६ (१) आनुपूर्वी - पहले के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा इत्यादि अनुक्रम को आनुपूर्वी कहते हैं । (२) नाम -- जीव में रहे हुए ज्ञानादि गुण और पुद्गल में रहे हुए रूपादि गुण के अनुसार जो प्रत्येक वस्तु का भिन्न २ रूप से अभिधान अर्थात् कथन होता है वह नाम कहलाता है । (३) प्रमाण – जिसके द्वारा वस्तु का परिच्छेद अर्थात् निश्चय होता है उसे प्रमाण कहते हैं । (४) वक्तव्यता — अध्ययनादि में प्रत्येक अवयव का यथा संभव नियत नियत अर्थ कहना वक्तव्यता है । (५) अर्थाधिकार - सामायिक आदि अध्ययन के विषय का वर्णन करना अधिकार है ।
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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