SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 437
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 404 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला दुनिया में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जो अपने या दूसरे में कषाय की उत्पत्ति का कारण न बने। इस तरह श्रुत और चारित्र भेद वाला धर्म भी छोड़ देना होगा, क्योंकि वह भी किसी अन्यमतावलम्बी के लिए कषाय का कारण है। तीनों लोकों के बन्धु, बिना ही कारण सब प्राणियों पर उपकार करने वाले भगवान् भी निकाचित कर्मों के उदय से गोशालक और संगम की कपाय का कारण बन गए / इसी तरह भगवान् का बताया हुआ धर्म, उस धर्म को मानने वाले साधु और द्वादशाङ्गी रूप पागम भी इस धर्म को न मानने वालों की कषाय का कारण है, वह भी अग्राह्य हो जायगा। अतः जो कषाय का कारण है, उसे छोड़ देना चाहिए यह एकान्त नियम नहीं है। शङ्का- शरीर से लेकर जिनधर्म तक जो पदार्थ गिनाए हैं, वे कषाय के कारण होने पर भी परिग्रह नहीं हैं, क्योंकि उनका ग्रहण मोक्षसाधन मानकर किया जाता है। उत्तर-शुद्ध और भिक्षा योग्य वस्त्र पात्रादि उपकरण भी अगर मोक्ष साधन मानकर ग्रहण किए जायं तो परिग्रह कैसे रहेंगे, क्योंकि दोनों जगह बात एक सरीखी है ? मूळ का कारण होने से भी वस्त्रादि को परिग्रह और त्याज्य कहा जाय तो शरीर और आहार भी मूळ का कारण होने से त्याज्य हो जायेंगे। इसलिए जो साधु ममत्व और मूर्छा से रहित हैं, सब वस्तुओं में अनासक्त हैं उनके वस्त्रादि को परिग्रह नहीं कहा जा सकता। __जो वस्त्र स्थूल हैं, बाह्य हैं,अग्नि या चोर वगैरह के उपद्रव से क्षण भर में नष्ट हो सकते हैं, सरलता से प्राप्त हो सकते हैं, कुछ दिनों बाद स्वयं जीर्ण हो जाते हैं,शरीर की अपेक्षा बिल्कुल तच्छ हैं, उनमें भी जो मनुष्य मूर्छा करता है,शरीर में तो उस
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy