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________________ 368 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला वाले शीतलता और उष्णता के अनुभव भी एक साथ नहीं हो . सकते, क्योंकि वे दोनों भिन्न भिन्न देश में रहते हैं। जिस तरह विन्ध्याचल और हिमालय के शिखरों को कोई एक साथ नहीं छू सकता। इस तरह अनुभव के विपरीत होने से क्रियाद्वयवादी का हेतु असिद्ध है। जीव उपयोगमय है / वह जिस समय, जिस इन्द्रिय के द्वारा जिस विषय के साथ उपयुक्त होता है उसी का ज्ञान करता है / दूसरे पदार्थों का ज्ञान नहीं कर सकता जैसे मेघ (बादल) के उपयोग में लगा हुआ बालक दूसरी सब वस्तुओं को भूल जाता है / जीव एक समय में एक ही जगह उपयुक्त होता है दूसरी जगह नहीं। इस लिए एक साथ एक समय में दो क्रियाओं का अनुभव प्रसिद्ध है। ___ जीव को सारी शक्ति एक क्षण में एक ही तरफ लगी रहती है। इसलिए वह उस समय दूसरी वस्तु का अनुभव नहीं कर सकता / एक साथ अनेक अनुभव होने से सांकर्य दोष आ जावेगा। एक समय में जीव के सभी प्रदेश एक ही तरफ उपयुक्त हो जाते हैं। ऐसा कोई प्रदेश नहीं बचता जिस से वह दूसरी क्रिया का अनुभव कर सके। इससे जीव एक साथ दो क्रियाओं का अनुभव नहीं कर सकता / इनसे मालूम पड़ता हैं कि एक साथ दो क्रियाओं की प्रतीति भ्रान्त है / इस भ्रान्ति का कारण समय की शीघ्रता और मन की अस्थिरता एवं चञ्चलता है। बहुत से कोमल पत्ते एक दूसरे पर रखने पर अगर उन्हें तेज भाले से एक दम छेदा जाय तो ऐसा मालूम पड़ेगा जैसे सब एक साथ ही छिद गए। यह निश्चित है कि पहिले पत्ते के बिना छिदे दूसरा नहीं छिद सकता।सभी पत्ते क्रम से ही छिदते हैं। फिर भी शीघ्रता के कारण यह मालूम पड़ता है कि सभी एक साथ छिद
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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