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________________ 352 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला के किसी क्षण में क्यों नहीं ? उत्तर-- कार्यकारण भाव ही इसका नियामक है / अन्तिम क्षण में कारण होने से घट उत्पन्न होता है, प्रथम या मध्यम क्षणों में कारण न होने से नहीं होता। किस कार्य का क्या कारण है, अथवा किस कारणसे किस कार्य की उत्पत्ति होती है ? इस बात का ज्ञान अन्वयव्यतिरेक से होता है। कार्य की उत्पत्ति के समय जिसका रहना आवश्यक हो वह उसके प्रति कारण है / अथवा जिस के अभाव में कार्य की उत्पत्ति न हो वह उसका कारण है / अन्वय और व्यतिरेक से अन्तिम क्षण की क्रिया ही घट का कारण निश्चित होती है और अन्तिम क्षण ही घटोत्पत्तिक्षण है। इसलिए क्रियमाण नियमित रूप से कृत होता है और कृत क्रियमाण होता भी है और नहीं भी / जहाँ कृत का अर्थचाक आदि से उतरा हुआ निष्पन्न घट है वहाँ उसे क्रियमाण नहीं कहते / जहाँ घट अपूर्ण है उसे कृत तथा क्रियमाण दोनों तरह से कहा जा सकता है। . उपसंहार-आधा बिछा हुआ बिस्तर जितने प्रदेशों में बिछा हुआ है उनकी अपेक्षा से 'बिछा हुआ' भी कहा जा सकता है / जमाली का मत है पूरा विस्तर बिना बिछे उसे 'विछा हुआ' नहीं कहना चाहिए / जमाली का कहना एकान्त व्यवहार नय को मानकर है। दूसरे मत का खण्डन करने से यह नयाभास बनजाता है ।नयाभास का अवलम्बन करने से जमाली का मत मिथ्या है। भगवती मूत्र का वचन भी निश्चय नय के अनुसार है। इस अपेक्षा से कार्य के थोड़ा सा हो जाने पर भी उसे कृतकहा जा सकता है। इसी तरह वस्त्र को जलते समय 'दग्ध' कहा जा सकता है। साड़ी का कोना जलने पर भी अवयव में अवयवी का उपचार करके 'साड़ी जल गई यह कहा जाता है।
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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