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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह का दूसरा काण्ड चौरासी हजार योजन मोटा है। तीसरा अब्बहुल काण्ड अस्सी हजार योजन मोटा है । रत्नप्रभा के नीचे घनोदधि की बीस हजार योजन मोटाई है। घनवात की असंख्यात हजार योजन। तनुवात और आकाश भी असंख्यात हजार योजन की मोटाई वाले हैं। शर्कराप्रभा के नीचे भी घनोदधि बीस हजार, तथा धनवान तनुवात और आकाश असंख्यात हजार योजन मोटाई वाले हैं । इसी तरह सातवीं नरक तक समझ लेना चाहिए। __ ये सातों पृथ्वियाँ झल्लरी की तरह स्थित हैं। सब के ऊपर रत्नप्रभा का खरकाण्ड है। उस में भी पहिले रत्नकाण्ड, उसके नीचे वनकाण्ड । इसी प्रकाररिष्ट काण्ड तक सोलह काण्ड हैं। रखरकाण्ड के नीचे पंकबहुल काण्ड है। उसके नीचे अब्बहुल । घनोदधि, घनवात तनुवात और आकाश के नीचे शर्करामभा है । इसी प्रकार सभी पृथ्वियाँ अवस्थित हैं । मर्यादा- पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण सभी दिशाओं तथा विदिशाओं में रत्नप्रभा की सीमा से लेकर अलोकाकाश तक वारह योजन का अन्तर है । शकराप्रभा में तीसरा हिस्सा कम तेरह योजन (१२-२३)। वालुकाप्रभा में तीसरा हिस्सा अधिक तेरह योजन (१३-१।३)। पंकप्रभा में चौदह योजन । धूमप्रभा में तीसरा भाग कम पन्द्रह योजन (१४-२।३)। तमःप्रभा में तीसरा भाग अधिक पन्द्रह योजन(१५-११३)। सातवीं तमस्तमः प्रभा में १६ योजन। प्रत्येक पृथ्वी के चारों तरफ तीन वलय हैं। घनोदधिवलय, घनवातवलय और तनुवातवलय। इन वलयों की ऊँचाई प्रत्येक पृथ्वी की मोटाई के अनुसार है। — घनोदधिवलय की मोटाई रत्नप्रभा के चारों तरफ प्रत्येक दिशा में छह योजन है । इसके बाद प्रत्येक पृथ्वी में योजन
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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