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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह २६९ वर्षा की आवश्यकता होती है उस समय नहीं बरसता। (३) असाधु पूजे जाते हैं । (४) साधु और सज्जन पुरुष सन्मान नहीं पाते । (५) माता पिता और गुरुजन का विनय नहीं रहता । (६) लोग मन से अप्रसन्न अथवा वैमनस्य वाले हो जाते हैं । (७) कड़वे या द्वेष पैदा करने वाले वचन बोलते हैं। (ठाणांग सूत्र ५५६) ५३५- सुषमा काल जानने के स्थानसात सात बातों से सुषमा काल का आगमन या उसका प्रभाव जाना जाता है। उत्सर्पिणी काल का तीसरा आरा तथा अवसर्पिणी का चौथा सुषमा कहलाता है। यह काल बयालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागरोपम तक रहता है। सुषमा काल आने पर (१) अकालदृष्टि नहीं होती। (२) हमेशा ठीक समय पर वर्षा होती है । (३) असाधु (असंयती) या दुष्ट मनुष्यों की पूजा नहीं होती । (४) साधु और सज्जन पुरुष पूजे जाते हैं । (५) माता पिता आदि गुरुजन का विनय होता है। (६) लोग मन में प्रसन्न तथा प्रेम भाव वाले होते हैं । (७) मीठे और दूसरे को आनन्द देने वाले वचन बोलते हैं। (ठाणांग सूत्र ५५६) ५३६- जम्बूद्वीप में वास सात मनुष्यों के रहने के स्थान को वास कहते हैं । जम्बूद्वीप में चुल्लहिमवन्त, महाहिमवन्त आदि पर्वतों के बीच में आ जाने के कारण सात वास या क्षेत्र हो गए हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- (१) भरत, (२) हैमवत, (३) हरि (४) विदेह, (५) रम्यक, (६) हैरण्यवत और (७) ऐरावत । भरत से उत्तर की तरफ हैमवत क्षेत्र है। उससे उत्तर की तरफ हरि, इस तरह सभी क्षेत्र पहिले पहिले से उत्तर की तरफ
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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