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________________ २५२ श्री सेठिया जैन अन्य माला आदि की समाचारी का पालन करना । पहिले पहिल गुणवान् गुरु को चाहिए कि अच्छे द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को देखकर आलोचना देने के बाद विनीत शिष्य को विधिपर्वक दीक्षा दे । दीक्षा लेने के बाद शिष्य को शिक्षा का अधिकार होता है । शिक्षा दो तरह की है- ग्रहणशिक्षा अर्थात् शास्त्रका अभ्यास और प्रतिसेवना शिक्षा अर्थात् पडिलेहणा आदि धार्मिक कृत्यों का उपदेश। ___दीक्षा देने के बाद बारह वर्ष तक शिष्य को सूत्र पढाना चाहिए। इसके बाद वारह वर्ष तक सूत्र का अर्थ समझाना चाहिए। जिस प्रकार हल, अरहट, या घाणी से छूटा हुआ भूखा बैल पहिले स्वाद का अनुभव किये बिना अच्छा और बुरा सब घास निगल जाता है, फिर उगाली करते समय स्वाद का अनुभव करता है । इसी प्रकार शिष्य भी मूत्र पढ़ते समय रस का अनुभव नहीं करता । अर्थ समझना प्रारम्भ करने पर ही उसे रस आने लगता है। अथवा जिस तरह किसान पहिले शाली वगैरह धान्य बोता है, फिर उसकी रखवाली करता है, फिर उसे काट कर चावल निकाल साफ करके अपने घर ले आता है और निश्चिन्त हो जाता है। अगर वह ऐसा न करे तो उस का धान्य बोने का परिश्रम व्यर्थ चला जाता है। इसी प्रकार अगर शिष्य बारह साल तक सूत्र अध्ययन करके भी उस का अर्थ न समझे तो अध्ययन में किया हुआ परिश्रम वृथा हो जाता है।अतः सूत्र पढ़ने के बाद बारह साल तक अर्थ सीखना चाहिए। ___ ऊपर कहे अनुसार सूत्रार्थ जानने के बाद अगर शिष्य आचार्य पद के योग्य हो तो उसे कम से कम दो दूसरे मुनियों के साथ ग्राम, नगर, संनिवेश आदि में विहार कराके विविध देशों का परिचय कराना चाहिए। जो साधु आचार्य पद के लायक न
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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