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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह २४३ और चारित्र में बड़ा साधु छोटे साधु द्वारा वन्दनीय समझा जाता है। अगर कोई छोटा साधु रत्नाधिक को वन्दना न करे तो आचार्य और उपाध्याय का कर्तव्य है कि वे उसे वन्दना के लिए प्रवृत्त करें। इस वन्दनाव्यवहार का लोप होने से व्यवस्था टूटने की सम्भावना है। इसलिए वन्दनाव्यवहार का सम्यक्प्रकार पालन करवाना चाहिए। यह दूसरा संग्रहस्थान है। (३) शिष्यों में जिस समय जिस सूत्र के पढ़ने की योग्यता हो अथवा जितनी दीक्षा के बाद जो सूत्र पढ़ाना चाहिए उस का आचार्य हमेशा ध्यान रक्खे और समय आने पर उचित सूत्र पढ़ावे । यह तीसरा संग्रहस्थान है। ठाणांग सूत्र की टीका में सूत्र पढ़ाने के लिए दीक्षापर्याय की निम्नलिखित मर्यादा की गई है तीन वर्ष की दीक्षापर्याय वाले साधु को आचारांग पढ़ाना चाहिए । चार वर्ष वाले को सूयगडांग । पाँच वर्ष वाले को दशाश्रुतस्कन्ध,बृहत्कल्प और व्यवहार। आठ वर्ष की दीक्षापर्याय वाले को ठाणांग और समवायांग। दस वर्ष की दीक्षापर्याय वाले को व्याख्याप्रज्ञप्ति अर्थात् भगवती सूत्र पढ़ाना चाहिए ।ग्यारह वर्ष की दीक्षापर्याय वाले को खुड्डियविमाणपविभत्ति (क्षुल्लकविमानप्रविभक्ति), महल्लयाविमाणपविभत्ति (महद्विमानप्रविभक्ति), अंगचूलिया, बंगचूलिया, और विवाहचूलिया ये पाँच सूत्र पढ़ाने चाहिए। बारह वर्ष वाले को अरुणोववाए (अरुणो.. पपात), वरुणोववाए (वरुणोपपात), गरुलोववाए (गरुडोपपात), धरणोववाए (धरणोपपात) और वेसमणोववाए (वैश्रमणोपपात) । तेरह वर्ष वाले को उत्थानश्रुत, समुत्थान श्रुत, नागपरियावलिउ और निरयावलिआउ ये चार सूत्र । चौदह वर्ष वाले को आशीविषभावना और पन्द्रह वर्ष
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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