SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (स्पृष्ट) - गुरु से विधिपूर्वक प्रत्याख्यान | ( १ ) फासि (२) पालियं (पालित) - प्रत्याख्यान को बार बार उपयोग में लाकर उसकी रक्षा करना । (३) सोहियं (शोभित ) - गुरु को भोजन वगैरह देकर स्वयं भोजन करना । ९७ ( ४ ) तीरियं ( तीरितं)-- लिए हुए पच्चकखाण का समय पूरा हो जाने पर भी कुछ समय ठहर कर भोजन करना । (५) किट्टि (कीर्तित) - भोजनादि प्रारम्भ करने से पहिले लिए हुए प्रत्याख्यान को विचार कर निश्चय कर लेना कि मैंने ऐसा प्रत्याख्यान किया था, वह अब पूरा हो गया है। ( ६ ) आराहिअं ( आराधित)- सब दोषों से दूर रहते हुए ऊपर कही विधि के अनुसार प्रत्याख्यान को पूरा करना । (हरिभद्रीयावश्यक नियुक्ति गाथा १५६३) ४८३ – पोरिसी के छः आगार - सूर्योदय से लेकर एक पहर तक चारों प्रकार के आहार का त्याग करना पोरिसी पचक्खाण है। छद्मस्थ व्यक्ति से बहुत बार व्रतपालन में भूल हो जाती है। प्रत्याख्यान का बिल्कुल स्मरण न रहने या और किसी ऐसे ही कारण से व्रतपालन में बाधा पड़ना संभव है । उस समय व्रत न टूटने पावे, इस बात को ध्यान में रखकर प्रत्येक पचक्खाण में सम्भावित दोषों का श्रागार पहिले से रख लिया जाता है। पोरिसी में इस तरह के छः आगार हैं। ( १ ) अनाभोग- व्रत को भूल जाने से भोजनादि कर लेना । (२) सहसाकार - मेघ बरसने या दही मथने आदि के समय रोकने पर भी जल, छाछ यदि त्याग की गई वस्तुओं का
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy