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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला कहा- नहीं, स्त्री हत्या महा पाप है। इसलिये क्रूर परिणाम वाले पुरुषों को ही मारना चाहिये ।” यह सुन कर चौथा बोला"यह ठीक नहीं । शस्त्र रहित पुरुषों पर वार करना बेकार है। इसलिये हम लोग तो सशस्त्र पुरुषों को ही मारेंगे।' पाँचवें चोर ने कहा- “सशस्त्र पुरुष भी यदि डर के मारे भागते हों तो उन्हें नहीं मारना चाहिए। जो शस्त्र लेकर लड़ने आवें उन्हें ही मारा जाय ।" अन्त में छठे ने कहा- "हम लोग चोर हैं। हमें तो धन की जरूरत है । इसलिए जैसे धन मिले वही उपाय करना चाहिए । एक तो हम लोगों का धन चोरें और दूसरे उन्हें मारें भी, यह ठीक नहीं है । यों ही चोरी पाप है । इस पर हत्या का महापाप क्यों किया जाय । दोनों दृष्टान्तों के पुरुषों में पहले से दूसरे.दूसरे से तीसरे इस प्रकार आगे आगे के पुरुषों के परिणाम क्रमशः अधिकाधिक शुभ हैं। इन परिणामों में उत्तरोत्तर संक्लेश की कमी एवं मृदुता की अधिकता है। छहों में पहले पुरुष के परिणाम को कृष्ण लेश्या यावत् छठे के परिणाम को शुक्ल लेश्या समझना चाहिये। ____ छहों लेश्याओं में कृष्ण, नील और कापोत पाप का कारण होने से अधर्म लेश्या हैं । इनसे जीव दुर्गति में उत्पन्न होता है। अन्तिम तीन तेजो, पद्म, और शुक्ल लेश्या धर्म लेश्या हैं। इन से जीव सुगति में उत्पन्न होता है। जिस लेश्या को लिए हुए जीव चवता है उसी लेश्या को लेकर परभव में उत्पन्न होता है। लेश्या के प्रथम एवं चरम समय में जीव परभव में नहीं जाता किन्तु अन्तर्मुहूर्त बीतने पर और अन्तर्मुहर्त्त शेष रहने पर ही परभव के लिये जाता है । मरते समय लेश्या का अन्तर्मुहूर्त बाकी रहता है। इसलिये परभव में भी जीव
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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