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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह नोकषाय मोहनीयः - कषायों के होता है वे नोकपाय हैं । वाले (उत्तेजित करने वाले) मोहनीय कहते हैं। २१ उदय के साथ जिनका उदय अथवा —— कषायों को उभाड़ने हास्यादि नवक को नोकषाय ( कर्मग्रन्थ पहला गाथा १७ ) ३० - आयु की व्याख्या और भेद:- जिसके कारण जीव भव विशेष में नियत शरीर में नियत काल तक रुका रहे उसे कहते हैं । आयु के दो भेदः - (१) सोपक्रम आयु (२) निरुपक्रम आयु । सोपक्रम आयु:- जो आयु पूरी भोगे बिना कारण विशेष ( सात कारण) से अकाल में टूट जाय वह सोपक्रम आयु है । निरुपक्रम :- जो आयु बंध के अनुसार पूरी भोगी जाती है बीच में नहीं टूटती वह निरुपक्रम आयु है। जैसे तीर्थंकर, देव, नारक आदि की आयु । ( सभाष्य तत्त्वार्थाधिगम अध्याय २ ) ( भगवती शतक २० उद्देशा १० ) ३१- स्थिति की व्याख्या और भेद:काल मर्यादा को स्थिति कहते हैं । स्थिति के दो भेदः - (१) कायस्थिति (२) भवस्थति । काय स्थिति:- किसी एक ही काय ( निकाय) में मर कर पुनः उसी में जन्म ग्रहण करने की स्थिति को कायस्थिति कहते हैं। जैसे:- पृथ्वी आदि के जीवों का पृथ्वी काय से चव कर पुनः असंख्यात काल तक पृथ्वी ही में उत्पन्न होना । -
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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