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________________ श्री सेटिया जैन प्रथमाला मोहनीय कर्म कहते हैं । जस मदिग मनुष्य के मद् अमद् विवेक को नष्ट कर देता है। मोहनीय कर्म के दो भेदः___ (१) दर्शन मोहनीय (२) चाग्नि मोहनीय । दर्शन मोहनीय:-जो पदार्थ जैमा है उसे उमी रूप में समझना यह दर्शन है अर्थात् तत्त्वार्थ श्रद्धान को दर्शन कहते हैं। यह आत्मा का गुण है । इस गुण के मोहित (धात) करने वाले कर्म को दर्शन मोहनीय कहते हैं। मामान्य उपयोग रूप दर्शन से यह दर्शन भिन्न है। चारित्र मोहनीयः-जिसके द्वारा आत्मा अपने अमली स्वरूप को पाता है उसे चारित्र कहते हैं । यह भी आत्मा का गुण है। इसको मोहित (घात) करने वाले कर्म को चारित्र मोहनीय कहते हैं। (टाणांग २ उद्देशा ४ मूत्र १०५ ) (कर्म ग्रन्थ पहला १३. १४ गाथा ) २१-चारित्र मोहनीय के दो भेदः (१) कपाय मोहनीय (२) नोकपाय मोहनीय कषाय मोहनीय:-कप अर्थान् जन्म मरण रूप मंमार की प्राप्ति जिमके द्वाग हो वह कपाय है। (कर्मग्रन्थ पहला) अथवा आत्मा के शुद्ध स्वभाव को जो मलिन करता है उसे कषाय कहते हैं । कषाय ही कषाय मोहनीय है। (पानवणा पद १४ टीका)
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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