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________________ श्री सेठिया जैन मन्थमाला १७-नय के दो भेद (१) द्रव्यार्थिक नय (२) पर्यायाथिक नय । द्रव्यार्थिक नयः-जो पर्यायों को गौण मान कर द्रव्य को ही मुख्यतया ग्रहण कर उसे द्रव्यार्थिक नय कहते हैं । पर्यायार्थिक नयः-जो द्रव्य को गौण मान कर पर्यायों को ही मुख्यतया ग्रहण करे उसे पर्यायार्थिक नय कहते हैं। (प्रमाणनयतन्वालोकालकार परिच्छेद ७) १८-धर्म की व्याख्या और उसके भेदः(१) जो दुर्गति में गिरने हुए प्राणी को धारण करे और मुगति में पहुंचावे उस धर्म कहते हैं। (दशकालिक अध्ययन १ गाथा १ की टीका) __अथवा(२) आगम के अनुमार इस लोक और परलोक के मुख के लिए हेय को छोड़ने और उपादेय को ग्रहण करने की जीव की प्रवृति को धर्म कहते हैं। (धर्मसंग्रह) अथवा (३) वत्थु महावो धम्मो, म्वन्ती पमुहो दसविहो धम्मो। जीवाणं रक्खणं धम्मो, रयणतयं च धम्मो ।। (१) वस्तु के स्वभाव को धर्म कहते हैं । (२) क्षमा, निलोंभता आदि दस लक्षण रूप धर्म है । (३) जीवों की रक्षा करना-बचाना यह भी धर्म है । (४) मम्यग ज्ञान, सम्यक्दर्शन और मम्यगचारित्र रूप रत्नत्रय को भी धर्म कहते हैं।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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