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________________ २४२ ३८६ [ ३६ ] विषय बोल नम्वर । विपय बोल नम्बर भी मनुष्य लोक में नहीं आ तिर्यञ्च आयु बन्ध के चार सकता १३८ कारण १३३ तत्काल उत्पन्न देवता मनुष्य लोक तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय के पांच में आने की इच्छा करता हुआ भेद ४०६ चार बोलों से आने में समर्थ तिर्यञ्च सम्बन्धी उपसर्ग के होता है १३६ | चार प्रकार तम्काल उत्पन्न हुआ नैरयिक तीर्थ की व्याख्या और उसके मनुष्य लोक में आने की इच्छा ! भेद १७७ करता है किन्तु चार बोलों से । तुच्छौपधि भक्षण ३०७ आने में असमर्थ है १४० तैजस बन्धन नाम कर्म ३६० तदुभयधर पुरुष ८४ । तैजस शगेर तदुभयागम ८३ त्याग ३५१ १६५ त्रस १६६ , त्रीन्द्रिय तप ३५१ तीन अच्छेद्य तप आचार ३२४ तीन का प्रत्युपकार दुःशक्य है १२४ तप शूर १६३ । तीन अर्थ योनि १२६ तर्क ३७६ तापस ३७२ तिरीड पट्ट ३७४ , दग्धाक्षर पांच ३८४ तिरोभाव तिर्यक् दिशा प्रमाणातिक्रम ३०६ | दण्ड तिर्यक् लोक ६५ दण्ड के दो भेद निर्यक् मामान्य ५६ दण्ड की व्याख्या और भेद ६६ तिर्यक् वेदिका ३२२ | दण्ड की व्याख्या और भेद ६० तप तप २८१ १२६
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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