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________________ विषय २७० ६३ २७ ३६२ [ ३३ ] बोल नम्बर | विषय बोल नम्बर गहीं गवेपणैषणा घाती कर्म गारव (गौरव ) की व्याख्या घ्राणेन्द्रिय और भेद गुण ४६ गुण के दो प्रकार से दो भेद ५५ गुण प्रकाश के चार स्थान २५६ चतुरिन्द्रिय गुण लोप के चार कारण २५८ चक्षु दर्शन १६६ गुण व्रत की व्याख्या और चतुरिन्द्रिय २८१ भेद (क) १२८ चतुष्पद तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय के गुप्ति २७१ २२ । चार भेद गुप्ति की व्याख्या और । चतुः स्पर्शी (ख) १२८ चन्द्र संवत्सर ४०० चरण करणानुयोग २११ ६३ चरण करणानयोग ३७० ३३७ । चरम समय निर्ग्रन्थ भेद गुरु तत्त्व गृहपति अवग्रह गेय काव्य गैरुक गोनिषाधिका ३७२ । अल्प बहुत्व गौणता १८० ग्रहणैपणा प्रासैषणा प्रासैषणा (मांडला) के पांच दोप चार गति में चार संज्ञाओं का १४७ चार मंगल रूप हैं (क) १२६ चार प्रकार का संयम १७६ चार महाव्रत चार कारणों से साध्वी से आलाप संलाप करता हुआ साधु निम्रन्थाचार का अतिक्रमण नहीं करता। १८३ | चार मूल सूत्र २०४
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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