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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला स्निग्ध, सरस आहार न करना चाहिए और न परिमाण से अधिक ढूंस ढूंस कर ही आहार करना चाहिए। अन्यथा ब्रह्मचर्य की विराधना हो सकती है। मात्रा से अधिक आहार तो ब्रह्मचर्य के अतिरिक्त शरीर के लिए भी पीडाकारी है। (२) ब्रह्मचारी को शरीर की विभूषा अर्थात् शोभा, शुश्रूषा न करनी चाहिये । स्नान, विलेपन, केश सम्मार्जन आदि शरीर की सजावट में दत्तचित्त साधु सदा चंचल चित्त रहता है और उसे विकारोत्पत्ति होती है। जिससे चौथे व्रत की विराधना भी हो सकती है। (३) स्त्री एवं उसके मनोहर मुख, नेत्र आदि अंगों को काम वासना की दृष्टि से न निरखना चाहिए । वासना भरी दृष्टि द्वारा देखने से ब्रह्मचर्य खंडित होना संभव है। (४) स्त्रियों के साथ परिचय न रखे। स्त्री, पशु, नपुंसक से सम्बन्धित उपाश्रय, शयन, आसन आदि का सेवन न करे । अन्यथा ब्रह्मचर्य व्रतभङ्ग हो सकता है। (५) तत्त्वज्ञ मुनि, स्त्री विषयक कथा न करे । स्त्री कथा में आसक्त साधु का चित्त विकृत हो जाता है । स्त्री कथा को ब्रह्मचर्य के लिए घातक समझ कर इससे सदा ब्रह्मचारी को दूर रहना चाहिए । ____ आचारांग सूत्र तथा समवायांग सूत्र में ब्रह्मचर्य व्रत की भावनाओं में शरीर की शोभा विभूषा का त्याग करने के स्थान में पूर्व क्रीड़ित अर्थात् गृहस्थावस्था में भोगे हुए
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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