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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ३०६ संयुक्ताधिकरण, हिंस्रप्रदान विरति का अतिचार है। मौखर्य, पाप कर्मोपदेश विरति का अतिचार है। (प्रवचन सारोद्धार गाथा २८२ की टीका) ३०६-सामायिक व्रत के पांच अतिचार-- (१) मनोदुष्प्रणिधान । (२) वाग्दुप्रणिधान । (३) काया दुष्प्रणिधान । (४) सामायिक का स्मृत्यकरण । (५) अनवस्थित सामायिक करण । (१) मनोदुष्प्रणिधानः-मन का दुष्ट प्रयोग करना अर्थात् मन को बुरे व्यापार में लगाना, जैसे सामायिक करके घर सम्बन्धी अच्छे बुरे कार्यों का विचार करना, मनो दुष्प्रणिधान अतिचार है। (२) वाग्दुष्प्रणिधानः वचन का दुष्ट प्रयोग करना, जैसे असभ्य, कठोर एवं सावध वचन कहना वाग्दुष्प्रणिधान अतिचार है। (३) काय दुष्प्रणिधानः-विना देखी, विना पूंजी जमीन पर हाथ, पैर आदि अवयव रखना, काय दुष्प्रणिधान अतिचार है। (४) सामायिक का स्मृत्यकरणः-सामायिक की स्मृति न रखना अर्थात् उपयोग न रखना सामायिक का स्मृत्यकरण अतिचार है । जैसे मुझे इस समय सामायिक करना चाहिये । सामायिक मैंने की या न की आदि प्रबल प्रमाद वश भूल जाना।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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