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________________ ३०८ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला आदि दुर्गति में ले जाने वाले अधिकरणों को, जो साथ ही काम आते हैं, एक साथ रखना संयुक्ताधिकरण अतिचार हैं । जैसे ऊखल के विना मूमल काम नहीं देता और न मूसल के विना ऊखल ही । इसी प्रकार शिला के विना लोढ़ा और लोढ़े के विना शिला भी काम नहीं देती । इस प्रकार के उपकरणों को एक साथ न रख कर विवेकी श्रावक को जुदे जुड़े रखना चाहिये । (५) उपभोग परिभोगातिरिक्त (अतिरेक ) : - उबटन, आँवला, तैल, पुष्प, वस्त्र, आभूषण, तथा अशन, पान, खादिम स्वादिम यदि उपभोग परिभोग की वस्तुओं को अपने एवं आत्मीय जनों के उपयोग से अधिक रखना उपभोग परिभोगातिरिक्त तिचार है । ( उपासक दशांग सूत्र ) (हरिभद्रीय आवश्यक पृष्ठ ८२६-३०) ( प्रवचन सारोद्धार गाथा २८२ ) अपध्यानाचरित, प्रमादाचरित, हिंस्र प्रदान और पाप कर्मोपदेश ये चार अनर्थदण्ड हैं । अनर्थदण्ड से विरत होने वाला श्रावक इन चारों अनर्थदण्ड के कार्यों से निवृत्त होता है । इनसे विरत होने वाले के ही ये पाँच अतिचार हैं । उक्त पाँचों अतिचारों में कही हुई क्रिया का सावधानी से चिन्तन करना अपध्यानाच रित विरति का अतिचार है । कन्दर्प, कौत्कुच्य एवं उपभोग परिभोगातिरेक ये तीनों प्रमादाचरित - विरति के अतिचार हैं।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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