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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह १७५ तरह गमनागमन किया जाय ? चलने, बोलन आदि क्रियाओं में कितना सावधान रहना चाहिए ? कहाँ से मिक्षा प्राप्त की जाय और किस प्रकार प्राप्त की जाय ? गृहस्थ के यहाँ जाकर किस तरह से खड़ा होना चाहिए ? निर्दोष मिक्षा किसे कहते हैं ? कैसे दाता से भिक्षा लेनी चाहिए ! भोजन किस तरह करना चाहिए ? प्राप्त भोजन में किस तरह सन्तुष्ट रहा जाय? इत्यादि बातों का स्पष्ट वर्णन है। द्वितीय उद्देशक: भिक्षा के समय ही भिक्षा के लिए जाना चाहिए । थोड़ी मी भी भिक्षा का असंग्रह । किमी भी भेदभाव के विना शुद्ध आचरण एवं नियम वाले घरों से भिक्षा लेना, ग्म वृनि का त्याग। (६) धर्मार्थ कामाध्ययन: मोक्षमार्ग का साधन क्या है ? श्रमण जीवन के लिए आवश्यक १८ नियमों का मार्मिक वर्णन, अहिंसा पालन किस लिए ? सत्य तथा असत्य व्रत की उपयोगिता कमी और कितनी है ? मैथुन वृत्ति से कौन कौन से दोष पैदा होते हैं ? ब्रह्मचर्य की आवश्यकता । परिग्रह की मार्मिक व्याख्या, रात्रि भोजन किस लिए वर्ण्य है ? सूक्ष्म जीवों की दया किस जीवन में कितनी शक्य है ? भिक्षुओं के लिए कौन कौन से पदार्थ अकल्प्य हैं ? शरीर-सत्कार का त्याग क्यों करना चाहिए ?
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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