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________________ १६३ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रस असत् की असत् से उपमा: अविद्यमान वस्तु की अविद्यमान से उपमा दी जाती है। जैसे:-यह कहना कि गधे का सींग शश (खरगोश) के सींग जैसा है । यहाँ उपमान गधे का सींग और उपमेय शश का सींग दोनों ही असत् हैं। (अनुयोगद्वार पृष्ठ २३१-२३२ आगमोदय समिति) २०४-चार मूल सूत्र (१) उत्तराध्ययन सूत्र (२) दशवैकालिक सूत्र । (३) नन्दी सूत्र (४) अनुयोग द्वार सूत्र । (१) उत्तराध्ययन-इस सूत्र में विनयश्रुत आदि ३६ उत्तर अर्थात् प्रधान अध्ययन हैं । इसलिए यह सूत्र उत्तराध्ययन कहलाता है । अथवा आचाराङ्ग सूत्र के बाद में यह सूत्र पढ़ाया जाता है । इसलिए यह उत्तराध्ययन कहलाता है । यह सूत्र अङ्गबाह्य कालिक श्रुत है । इस सूत्र के ३६ अध्ययन निम्न लिखित हैं:(१) विनयश्रुतः-विनीत के लक्षण, अविनीत के लक्षण और उसका परिणाम, साधक का कठिन कर्तव्य, गुरुधर्म, शिष्यशिक्षा, चलते, उठते, बैठते तथा भिक्षा लेने के लिए जाते हुए साधु का आचरण । (२) परिषहः-भिन्न भिन्न परिस्थितियों में भिन्न भिन्न प्रकार के आये हुए आकस्मिक संकटों के समय भिक्षु किस प्रकार सहिष्णु एवं शान्त बना रहे आदि बातों का स्पष्ट उल्लेख ।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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