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________________ १६२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला को विद्यमान योजन परिमाण कूप के बालाग्रादि से उपमा दी जाती है । 1 असत् की सत् से उपमा:- अविद्यमान वस्तु की विद्यमान से उपमा दी जाती है । जैसे: वसन्त के समय में जीर्णप्रायः, पका हुआ, शाखा से चलित, काल प्राप्त, गिरते हुए पत्र की किसलय (नवीन उत्पन्न पत्र ) के प्रति उक्ति: " जैसे तुम हो वैसे हम भी थे और तुम भी हमारे जेसे हो जा" इत्यादि । ---- उपरोक्त वार्तालाप किसलय और जीर्णपत्र के बीच में न कभी हुआ और न होगा । भव्य जीवों को सांसारिक समृद्धि से निर्वेद हो । इस आशय से इस वार्तालाप की कल्पना की गई है । 1 " जैसे तुम हो वेसे हम भी थे" इस वाक्य में किसलय पत्र की वर्तमान अवस्था की उपमा दी गई है। किसलय उपमान है जो कि विद्यमान है । और पाण्डु पत्र की अतीत किसलय अवस्था उपमेय है । जो कि अभी विद्यमान है । इस प्रकार यहाँ असत् की सत् से उपमा दी गई है । " तुम भी हमारी तरह हो जाओगे" इस वाक्य में भी पाण्डु पत्र की वर्तमान अवस्था से किसलय पत्र की भविष्य कालीन स्था की उपमा दी गई है । पाण्डुपत्र उपमान है जो कि विद्यमान है । किसलय की भविष्यकालीन पाण्डु अवस्था उपमेय है । जो कि अभी मौजूद नहीं है । इस प्रकार यहाँ पर भी असत् की सत् से उपमा दी गई है । 1
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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