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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह १२७ (३) एक फूल सुगन्ध और रूप दोनों से युक्त होता है। जैसे जाति पुष्प, गुलाब का फूल आदि । (४) एक फूल गन्ध और रूप दोनों से हीन होता है । जैसे बेर का फूल धतूरे का फूल। (ठाणांग ४ सूत्र ३२०) १७१-फूल की उपमा से पुरुष के चार प्रकार: (१) एक पुरुष रूप सम्पन्न है । परन्तु शील सम्पन्न नहीं। जैसे-ब्रह्म दत्त चक्रवती। (२) एक पुरुष शील सम्पन्न है । परन्तु रूप सम्पन्न नहीं । जैसे हरिकेशी मुनि। (३) एक पुरुष रूप और शील दोनों से ही सम्पन्न होता है। जैसे भरत चक्रवर्ती । (४) एक पुरुष रूप और शील दोनों से ही हीन होता है। जैसे-काल सौकरिक कसाई । (ठाणांग ४ सूत्र ३२०) १७२-मेघ चार (१) कोई मेघ गर्जते हैं पर बरसते नहीं। (२) कोई मेघ गर्जते नहीं हैं पर बरसते हैं । (३) कोई मेघ गर्जते भी हैं और बरसते भी हैं। (४) कोई मेघ न गर्जते हैं और न बरसते हैं। (ठाणांग ४ उद्देशा ४ सूत्र ३४६) १७३-मेघ की उपमा से पुरुष के चार प्रकार:(१) कोई पुरुष दान, ज्ञान, व्याख्यान और अनुष्ठान आदि की कोरी बातें करते हैं पर करते कुछ नहीं।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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