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________________ १२६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला होता है और उस का ढकना विष का होता है । (३) विष कुम्भ मधु विधान -- एक कुम्भ विष से भरा होता है। और उस का ढकना मधु का होता है । (४) त्रिप कुम्भ विप पिधान -- एक कुंभ विष से भरा हुआ होता है । और उसका ढकना भी विष का ही होता हैं । ( ठाणांग ४ सूत्र ३६० ) १६६ - कुम्भ की उपमा से चार पुरुष (१) किमी पुरुष का हृदय निष्पाप और अकलुप होता है। और वह मधुरभाषी भी होता है । वह पुरुष मधु कुम्भ मधु पिधान जैसा है । 1 - (२) किमी पुरुष का हृदय तो निष्पाप और अकलुप होता है । परन्तु वह कटुभाषी होता है । वह मधु कुम्भ विष पिधान जैसा है 1 (३) किमी पुरुष का हृदय कलुपता पूर्ण है । परन्तु वह मधुरभाषी होता है । वह पुरुष विष कुम्भ मधु पिधान जैना है । (४) किमी पुरुष का हृदय कलुपता पूर्ण है । और वह कटुभाभी है । वह पुरुष विष कुम्भ विष पिधान जैसा है । ( ठाणांग ४ सूत्र ३६० ) १७० - फूल के चार प्रकार (१) एक फूल सुन्दर परन्तु सुगन्ध हीन होता है । जैसे आकुली, रोहिड़ आदि का फूल । (२) एक फूल सुगन्ध युक्त होता है । पर सुन्दर नहीं होता । जैसे वकुल और मोहनी का फूल ।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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