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________________ ६६ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ६६-दण्ड की व्याख्या और भेदः-जो चारित्र रूपी आध्या त्मिक ऐश्वर्य का अपहरण कर आत्मा को असार कर देता है । वह दण्ड है। (समवायांग ३) अथवाःप्राणियों को जिससे दुःख पहुंचता हैं उसे दण्ड कहते हैं। (आचारांग श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन ४ उद्देशा १) अथवा:मन, वचन, काया की अशुभ प्रवृत्ति को दण्ड कहते हैं। (उत्तराध्ययन अध्ययन १६) दण्ड के तीन भेदः(१) मनदण्ड (२) वचनदण्ड (३) कायादण्ड । (समवायांग ३) (ठाणांग ३ उद्देशा १ सूत्र १२६) १७-कथा तीन:-- ___ (१) अर्थकथा (२) धर्मकथा (३) काम कथा । अर्थकथा:--अर्थ का स्वरूप एवं उपार्जन के उपायों को बतलाने वाली वाक्य पद्धति अर्थ कथा है जैसे कामन्दकादि शास्त्र । धर्मकथा:-धर्म का स्वरूप एवं उपायों को बतलाने वाली वाक्य पद्धति धर्म कथा है । जैसे उत्तराध्ययन सूत्र आदि । कामकथा:-काम एवं उस के उपायों का वर्णन करने वाली वाक्यपद्धति काम कथा है। जैसे वात्स्यायन कामसूत्र वगैरह। (ठाणांग ३ सूत्र १८६)
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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