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________________ २०४ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri lezakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhav 1.7, Arri.h Clotirg! Colophon: चन्द्रप्रभ जिन नत्वा सर्वज्ञ निजग रुम् । ब्रह्मविद्याविधि वक्ष्ये यथाविद्योपदेशतः ॥ धेनुमुद्रया सर्वोपचारं कृत्वा पूजाविधि परिसमापयेत् । नहीं है। ५६१. चन्द्रप्रभमंत्र Opering ! ॐ चद्रप्रभो प्रभाधीश-बद्रशेखग्चभू । चन्द्रलक्ष्मकचन्द्राग चन्द्रवीजनमाऽस्तु ते ।। - नित्य जपने ते मर्वमगल होय है। नहीं है। Closing : Co'cphons ५६२. चौबीस तीर्थकर मंत्र सव Opening : आदिनाथमत्र। ॐही श्री चक्रेश्वरी अप्रतिनके शातिं कुरु कुरु स्वाहा। Closing t - ... नित्य स्मरण करना सर्वकार्य सिद्ध होय । Colophon: इति श्री मत्र सम्पूर्णस् । ५६३. चौबीस शासन देवी मंत्र Opening : मत्र के अन्त मे मरन माह नवसा अरण विद्वषण आकपनए सब .. .. । ... धनार्थी आकपन करे ता धन बहुत पावे । नही है। Closing Colcphon. ५६४. गणधरवलयकल्प Opening : देवदत्तस्य नामाई कारेण वैष्टयेत् । ततोऽनाहतेन तस्याध कमक्षयार्थ अर्थप्राप्त्यर्थ पमासनम् शातिकोटि. सारस्वाधिकारासन [ शत्रुविनाशार्थ क्रूरप्राणिवश्या । डूरामन।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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