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________________ २०३ Catalozue of Sanskrit, Prakrit,' Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Mantra, Karmakanda) ५५८. बीज मत्र Opening ! मन वचन काय के जोग की जो क्रिया सो जोग ताके दोय भेद एक शुभ एक अशुभ । Closing : वक्तु लालविनोदेन श्री गुरुणा प्रभावत. । श्लोकसख्यामिति ज्ञय अष्टाधिकशतद्वयी ॥ Colophon : लालविनोदी ने रचा सस्कृतवानी माहि । वृदावन भाषा लिखी कछु इक ताकी छाह ॥१८६।। भूलचुक सब क्षिमा करि लीजो पडित सोध । बालक बुद्धी जानि मोहि मत कीजो उर क्रोध ।।१९०॥ सम्वतसर विक्रमविगत चन्द्रर,दिगचद । माघ कृष्ण आठ गुरु पूरण जयति जिनद |॥१६॥ इति भाषाकारनामकुलाग्ननामसमस्त लिखित सम्वत् १८६१ माघवदी ८ गुरौ वार कू नवीन भाषा वनी सो यही मूल प्रति है कर्ता के हाय की लिषी। ५५९. बीजकोश Opening : Closing | तेजो भक्तिविनयः प्रणव: ब्रह्मप्रदीपवामाश्च । वेदोब्जदहनध्र वमादि (?) ओमितिख्यातम् ।। मायातत्वं शक्तिर्लोकेशो ह्री त्रिमूर्तिबीजेशो। कूटाक्षरं क्षकारं मलवरयू पिण्डमष्टमूर्तिञ्च ।। सर्वधान्यकृताजस्तद्रजोभिर्गुडान्वितैः । चन्द्रनागुरुकर्पूरगुग्गुलानघृतादिभिः ।। पायामानाक्षमिश्रब्रह्मवृक्षोद्भवादिभि । समिद्भिश्च चरेद्धोम प्रतिष्ठाणान्तिपौष्टिके ।। ॥ इति षट्कर्मविधि समाप्त ॥ ५६०. ब्रह्मविद्याविधि Colophon: Opening : श्रीमद्वीर महासेन ब्रह्माण पुरुषोत्तमम् । जिनेश्वर व त वदे मोक्षलक्षम्यकनायकम् ।।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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