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________________ ११५ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripta (Dharma, Darsana, Acara) Closing : शून्याष्टाष्टद्वया काढ्य सध्ययामुनिनोदिन । नदत्वे पावनो प्रथो यावत्कालातमेव हि ॥१३४ ।। Colophon इति श्री प्रश्नोत्तरोपासकाचारे भट्टारक श्री सकलकोत्ति विरचिते अनुमत्यादि प्रतिमा द्वयप्ररूपको नाम चतुर्विंशतितम. परिच्छेद ॥ २४६ ॥ स वत् १६७। लिखितमिद मिश्रोपनामक गुलजारीलालशर्मणा ॥ मिती माघ शुद्ध ५ शनी शुभ भवतु श्लोकसंख्या प्रमाणम् ३३०० ॥ स वत् १८७५ की लिखी हुई प्रति से यह नकल की गई है। देखें-(१) दि० जि० २०, पृ० ६३ । (२) जि र को., २७८ । Opening : Closing : ३१४. प्रश्नोत्तरोपासकाचार देखे-क्र० ३१३ । गुणधरमुनिसेव्य, विश्वतत्वप्रदीपम् । विगतसकलादेश अनुपलब्ध। Colophon: ३१५. प्रश्नोतरश्रावकाचार Opening सेवत जहिं सुरईश, वृपनायक वृषदाइ हैं। वदौ जिनवृपभेश, रच्यो तीर्थ वृष आदिजिन ।। Closing : तीनहिसे या ग्रथ के, भए जहानाबाद । चौथाई जलपथ विष, वीतराग परमाद ।। Colophon: इति श्री मन्महाशीलाभरण भूषित जैनी सुनु लाला बुलाकी दास विरचिताया प्रश्नोत्तरोपासकाचारभाषायां अनुमत्यादिमप्रतिमाद्वय प्ररूपणो नाम चतुर्विशतिम प्रभाव ॥२४॥ इति भाषा प्रश्नोत्तर श्रावकाचार अथ सम्पूर्ण । सवत् १८२१ पौष शुक्ल दशमी चद्रवार । पुस्तकमिद रघुनाथ शर्मा ने लिखि। मगलमस्तु । ३१६. प्रतिक्रमण सूत्र Opening: इच्छामि पडिकमिउ पगामसिज्झाए निगामसिज्झाण उब तणाण परियत्तणाए आउदृणाए सारणाए" .
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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