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________________ Catalogue of Sanskrit, Prakrit. Apabhrainskın & Hind: Manuscripts (Dharna, Darsna,Aciral भरमतिमर गव नगतु उदय हुब तिभुवन दिनकर, गपि पि भवधि तरन लहत गति परममुक्तिवर । ततु परनकमान मविजन भ्रमर सणि अनुभवरन चगत, वहाह नजरि मुझपर मुभिम फन फलहि मकहि यग्रत ॥१॥ Closing नगिन नश्यनी यारगुण, सुभमहरत के मद्धि । प्रय अनुप रच्यो पङ, है ताको मनिद्धि ॥ Colophon : इति श्री बुद्धिपिलान नामश्च सम्पूर्णम् । मिती मादी यदी हमवत् १९८२ में प्रप पूर्णभयो। बेनी प्रत देगी हती, तसी लई उतार। अधिर पट पर हो जो, वृधजन लीयो समार ।। १६०. चन्द्रगतक Opening : अनमो अन्यान में निवाम शुद्ध चेतन को, अनुमो गा मुद्धबोध बोध को प्रकाश है। अनभी अनूप उपरहत अनत ग्यान , अनु । जनीन त्याग ग्यान मुखगरा है ।। मपतगंपगुनथान में छूटे एक गत देयकी। यो कयो मरय गुग्णय में, मति वचन जिनसेवकी ।। इति श्री चरगतक ममाप्तम् । Closing : Colophon . • १६१. चरचा नामावली Opening: प्रैलोक्य सकल त्रिकानविषय सालोकमालोकितम्, । । माक्षाधेनयथास्वय करतले रेखात्रय सागुलि । रागद्यप भयामयातक् जरा लोलत्वलोभादयो, नाल यत्पदलघनाय समह दिवो मया वद्यते ॥ मैसें जानि करि सदाकाल वीतराग देवको स्मरण करवी जोग्य छ। Closing I
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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