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________________ } ने भवन की उन्नति हेतु कलकत्ता और वनारस मे वडो पैमाने पर जैन प्रदर्शिनियों और सभाओ का आयोजन किया। भवन के वैभव सम्पन्न सग्रह को देखकर डा० हर्मन जैकोबी, श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि जगत् प्रसिद्ध विद्वान प्रभावित हुए तथा उन्होने बाबू देवकुमार की स्मृति में प्रशस्तियां लिखी एव भवन की सुरक्षा एवं समृद्धि की प्रेरणाएं दी । सन् १९१९ मे स्व० बाबू देवकुमार जी के पुत्र बाबू निर्मलकुमार जी भवन के मंत्री निर्वाचित हुए । मत्री पद का भार ग्रहण करते ही निर्मलकुमार जी ने भवन के कार्यकलापो मे गति भर दी । १९२४ मई मे जैन सिद्धात भवन के लिए स्वतन्त्र भवन का निर्माण कार्य आरम्भ करके एक वर्ष मे भव्य एव विशाल भवन तैयार करा दिया | तत्पश्चात् धार्मिक अनुष्ठान के साथ सन् १९२६ मे श्रुतपञ्चमी पर्व के दिन श्री जैन सिद्धात भवन ग्रन्थागार को नये भवन मे प्रतिष्ठापित कर दिया । उन्होने अपने कार्यकाल मे ग्रन्थागार मे प्रचुर मात्रा मे हस्तलिखित तथा मुद्रित गथो का सग्रह किया । जैन सिद्धात भवन आरा में प्राचीन गथो की प्रतिलिपि करने के लिए लेखक ( प्रतिलिपिकार ) रहते थे, जो अनुपलब्ध ग्रन्थों को बाहर के ग्रन्थागारो से मगाकर प्रतिलिपि करते थे तथा अपने सग्रह मे रखते थे । यहाँ नये ग्रन्थो की प्रतिलिपि के अतिरिक्त अपने सग्रह के जीर्ण-शीर्ण ग्रन्थो की प्रतिलिपि का भी कार्य होता था । इसका पुष्ट प्रमाण ग्रन्थो मे प्राप्त प्रशस्तियाँ हैं । जैन सिद्धान्त भवन, आरा से अनेक ग्रन्थ प्रतिलिपि कराकर सरस्वती भवन बम्बई एव इन्दौर भेजे गये हैं । सन् १९४६ मे बाबू निर्मलकुमार जैन के लघुभ्राता चक्रेश्वरकुमार जैन भवन के मंत्री चुने गये । ग्यारह वर्षों तक उन्होने पूरे मनोयोग से भवन की सेवा की । पश्चात् सन् १९५७ से बावु सुबोधकुमार जैन को मंत्री पद का भार दिया गया, जिसे वे अभी तक पूरी लगन एव जिम्मेदारी के साथ निर्वाह रहे हैं। बाबू सुवोधकुमार जैन भवन के चतुर्मुखी विकास के लिए दृढप्रतिज्ञ है । इनके कार्यकाल मे भवन के क्रिया-कलापो मे कई नये अध्ाय जुड गये हैं, जिनसे बावू सुबोधकुमार जैन का व्यक्तित्व एव कृतित्व दोनो उभर कर सामने आये है । 3 " ऐतिहासिक एव पुरातात्विक जैन सिद्धात भवन, आरा के अन्तर्गत जैन सिद्धात भास्कर एव जैना एण्टीक्वायरी शोध पत्रिका का प्रकाशन सन १९१३ से हो रहा है। पत्रिका द्वं भाषयिक, हिन्दीअग्रेजी तथा षाण्मासिक है। पत्रिका में जैनविद्या सम्बन्धी सामग्री के अतिरिक्त अन्य अनेक विधाओ के लेख प्रकाशित होते है । शोध-पत्रिका अपनी उच्चकोटि की सामग्री के लिए देश-देशान्तर में सुविख्यात है । इसके अक जून अर दिसम्बर मे प्रकट होते हैं ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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