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________________ सम्पादकीय श्री देवकुमार जैन ओरिएण्टल लायब्ररी तथा श्री जैन सिद्धान्त भवन, आरा 'सेन्ट्रल जैन ओरिएन्टल लायब्ररी' के नाम से देश-विदेश मे विख्यात है। यह ग्रन्थागार आरा नगर के प्रमुख भगवान महावीर मार्ग ( जेल रोड ) पर स्थित है। वर्तमान मे इसके मुख्य द्वार के ऊपर सरस्वती जी की भव्य एव विशाल प्रतिमा है। अन्दर बहुत वडा मगमरमर का हॉल है, जिसमे सोलह हजार छपे हुए तथा लगभग छह हजार हस्तलिखित कागज एव ताडपत्र के ग्रन्थो का सग्रह है। जैन सिद्धान्त भवन के ही तत्वावधान मे श्री शान्तिनाथ जैन मन्दिर पर 'श्री निर्मलकुमार चक्रेश्वरकुमार जैन कला दीर्घाय है। इस कला दीर्घा मे शताधिक दुर्लभ हस्तनिर्मित चित्र, ऐतिहासिक सिक्के एव अन्य पुरातत्त्व सामग्री प्रदर्शित है। यही ८४ वर्ष पूर्व एक महत्वपूर्ण सभा मे श्री जैन सिद्धान्त भवन, आरा का उद्घाटन (जन्म ) हुआ था। सन् १९०३ मे भट्टारक हर्षकीति जी महाराज सम्मेद शिखर की यात्रा से लौटते समय आरा पधारे। आते ही उन्होने स्थानीय जैन पचायत को एक सभा मे बाबू देवकुमार जी द्वारा सगृहीत उनके पितामह प० प्रभुदास जी के ग्रन्थ सग्रह के दर्शन किये तथा उन्हे स्वतन्त्र ग्रन्थागार स्थापित करने की प्रेरणा दी। बाबू देवकुमार जी धर्म एव सस्कृति के प्रेमी थे, उन्होने तत्काल श्री जैन सिद्धान्त भवन की स्थापना वही कर दी। भट्टारक जी ने अपना ग्रन्थमग्रह भी जैन सिद्धान्त भवन को भेट कर दिया। जैन सिद्धान्त भवन के सवर्द्धन के निमित्त बाबू देवकुमार जी ने श्रवणबेलगोला के यशस्वी भट्टारक नेमिसागर जी के साथ सन् १९०६ मे दक्षिण भारत की यात्रा प्रारम्भ की, जिसमे विभिन्न नगरो एव गावो मे सभाओ का आयोजन करके जैन सस्कृति की सुरक्षा एव समृद्धि का महत्व बताया। उसी समय अनेक गावो और नगरो से हस्तलिखित कागज एव ताडपत्र के ग्रन्थ सिद्धान्त भवन के लिए प्राप्त हुए तथा स्थानो पर शास्त्रभडारो को व्यवस्थित भी किया गया। इस प्रकार कठिन परिश्रम एव निरन्तर प्रयत्न करके बा० देवकुमार जी ने अपने ग्रन्थकोश को समुन्नत किया। उस समय यात्राएं पैदल या बैलगाडियो पर हुआ करती थी। किन्तु काल की गति को कौन जानता है ? १९०८ ई० मे ३१ वर्ष की अल्पायु मे ही बाबू देवकुमार जी स्वर्गीय हो गये, जिसमे जैन समाज के साथ-साथ सिद्धात भन के कार्य-कलाप भी प्रभावित हुए। तत्पश्चात् उनके साले बाबू 'करोडीचन्द्र ने भवन का कार्य सभाला और उन्होने भी दक्षिण भारत तथा अन्य प्रान्तो की यात्रा करके हस्तलिखित ग्रन्थो का संग्रह कर सेवा कार्य किया। उनके उपरान्त आरा के एक और यशस्वी धर्मप्रेमी कुमार देवेन्द्र
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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