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________________ ११ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhratisha & Hindi Manuscripta ( Puriga, Carito, Kathn) २८. दशलाक्षणीकथा Opening . रिषभनाय प्रनमू सदा, गुरुगनघर के पाय । तीन भवन विख्यात है, सब प्राणी सुपदाय ।। Closing : भूला चूका होय जो, लीजो सुकवि सुधार । मोह दोम दोर्ज नहीं, करी भव हितकार ।। Colophon: पति दणलाक्षणी कथा समाप्तम् । २६. दान कथा Opening . देय नमो अग्ति सदा और निज समूहन को चितलाई । मूरज आचार को भजी और नमो उपध्याय के नित पाई॥ Closing दानकाथा पूरन भी, पर्ने सुनै नित सोई । पुग्न दालिद्र (दारिद्र) नाग सर्व, तुरत महामुख होई ॥ Colophon इति श्री दानकथा सपूर्ण। लिखित पडित रामनाथ पुगेहित मुकाम चन्द्रापुरी । ३०. धर्मगर्माभ्युदय Opening: श्री नाभिमूनोशिचरम दि गुग्म नखेदव. कौमुदमेधयतु यवानमन्नागिनरेद्रचण्टाम्मगभंप्रतिविमेण ॥१॥ Closing · अमजदयविचिक प्रमूनोपचार प्राह चद्राराधितोमोक्षलक्षीम् । तदनुतदनुयायी प्रापपर्यतपूजीपचित मुकतराणि स्व पद नापिलोक ॥ १२५ ॥ Colophon ' इति श्री महाकवि हरिचन्द्रविरचिते धर्मशर्माभ्युदये महाकाव्ये श्री धर्मनाथ निर्वाणगमनो नाम एकविंशतितम सर्ग ॥२१ ॥ श्री मवत १८८९ कार्तिक धवल पचम्याम् । अग्रवाल आरानगरे वामलगोने वाव जीवनलाल जी तथा गृपाल चद जी तेन इद शास्त्र लिखापिन तथा उत्तमचदजी वा जो धनलाल जी अछेलाल तथा प्यारेलालजी इद शास्त्र लिखापितम । द्रष्टव्य--(१) दि० जि०म० २०, पृ०६। (२) प्र० जै० सा०, पृ० १६२ ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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