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________________ १० श्री जैनसिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan Arrah २५ दर्शनकथा Opening! श्री रिषभनाय जिन प्रणमौ तोहि । अजर अमर पद दीजे मोहि ॥ अजित जिनेश्वर वदन करी। कर्मकलक छिनक मे हरौं । Closing ! दर्शन कथा पूरणभई, पढे सुनै सब कोय । दुख दलिद्र (दरिद्र) नाश सबै, तुरत महासुख होय ।। ॥१॥ Colophon: इति श्रीदर्शनकथा सम्पूर्ण । मिती अगहन वदी ३० सवत् १९६१ मुकाम चन्द्रापुरी । २६. दर्शनकथा Opening | देखे ऋ० २५ । Closing . दुख दरिद्र सब जाय नशाय । जो यह कथा सुनो मनलाय ॥ पुत्रकलित्र बढे परिवार । जो यह कया सुनै नरनार ।। Colopnon: इति दर्शन कथा सम्पूर्णम् । यह ग्रन्थ सवत् १९४० मे मनोहरदास आरा के मंदिर में चढाया गया था। Opening! २७. दशलाक्षगी कथा अहं त भारती विद्यानदिसद्गुरु-पंकजम् । प्रणम्य विनयात् वक्ष्ये दशलाक्षणिक व्रतम् ॥ १॥ राजगेहात्समागत्य वैभारवरभूधरम् । श्रेणिको नमतिस्मोच्च. वीर गभीरधीधरम् ।। २ ।। जातः श्रीमतिमूल सघतिलके श्री कुदकु दान्वये, विद्यानदि गुगरिप्ठमहिमा भव्यात्मसवुद्धये । तच्छिष्य श्रुतसागरेण रचित कल्याणकीांग्रहे, शदेयाइशलाक्षणव्रतमिद भूयाच्चसत्सपदे । इति श्री दशलाक्षणिक कथा समाप्ता.। Closing ! Colophon:
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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