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________________ ( १७४ ) श्री जैन नाटकीय रामायण | जो भक्षक मांस के हैं, वो दिखा सकते हैं क्या रण में । / नहीं अब तक मिला है वीर तुमको कोई मुझ जैसा || । न देखा होगा तुमने क्षेत्र रण का आज के जैसा || म्लेक्ष नहीं जाते सहे कर्कश बचन इन दुष्ट बच्चों के राम - लगे हैं दुष्ट को ही वाक भद्दे साधु सच्चों के ॥ घड़ी जब नाश की कोई पुरुष के सामने भाती । तो सत शिक्षा भी उसके वास्ते भग्नि ही होजाती || म्लेन -- बिताते हो समय क्यों बाद में कुछ करके दिखलाओ | यदी हो वीर तो बढ़कर के भागे युद्ध में आओ || लक्ष्मण - नहीं आते हैं जब तक ही तुम्हारी प्राण रक्षा कि आते ही मचेगी किस तरह हो प्राण रक्षा है || ( युद्धके बाजे बजते हैं दोनों ओर से घमासान युद्ध होता है) F ड्राप गिरता है क द्वितिय - दृश्य प्रथम 1 ( नारदजी हाथ में बीणा लिये हुवे आते हैं गाते हुवे ) जय जिनेन्द्र जयजिनेन्द्र जयजिनेन्द्र जय जिनेन्द्र | ( कुछ देर तक गौकर फिर कहते हैं ) नारद - मैंने राजा दशरथ के पुत्र राम की बहुत प्रशंसा
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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