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________________ द्वितीय भाग। ( १२७) वीरता की परिक्षा रण क्षेत्र में होती है। जो गर्जते हैं वह वरस ते नहीं । जो वरस्ते हैं वह गर्जते नहीं । रावण-पवनकुमार, तुमको मैं धन्यवाद देता हूं। जो तुमने समय पर पाकर मेरी सहायता की । ( वरुण से ) अब मेरे सब बाहू मेरे साथ हैं । श्रा युद्ध कर। वरुण-माज बड़े दिनों के बाद मुझे यह मौका मिला है कि मैं तुझ जैसे वीर पुरूप से युद्ध करने के लिये उद्यत हुमा हूं। रावण-हे सिद्ध भगवान मैं अपनी कार्य सिद्धी के लिये तुम्हें नमस्कार करता हूं । ॐ नमः सिद्धेभ्य । (युद्ध का बाजा बजना प्रारम्भ होता है । रावण और वरुण आपस में लड रहे हैं। पवनकुमार भी दूसरे योद्धाओं से लड़ रहे हैं । युद्ध का दृश्य भयानक होता है । पदी गिरता है। द्वितिय अंक समाप्त अंक तृतिय-दृश्य प्रथम [भयानक वन में पर्यत के नीचे एक शिला पर अंजना बच्चे सहित लेटी हुई है। बसन्तमाला उसके पैर दबा रही है।] बसन्तमाला-~सखी, कर्मों की बड़ी विचित्र गती है। चारण मुनि ने बताया कि तुमने पूर्व भर में जिन प्रतिमा का
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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