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________________ द्वितीय भाग। (१२५) अंजना हैं ! पतिदेव, पतिदेव, ( दौड़ कर उनसे चिण्ट जाती है ) बताओ, बताओ, अब तक तुम मुझसे क्यों नहीं बोलते थे । क्यों रूठे हुने थे। (रोती हुई ) (प्रहस्त और बसन्ततिलका बाहर चले जाते हैं) पवन-( आंखों में जल भर कर ) प्रिये, मेरा अपराध क्षमा करो । मैंने अभी तक तुम्हें नहीं पहचाना था । चकवी को देखने से तुम्हारे लिये मेरे हृदय में प्रेम के बादल उमड पाये । अंजना-भब मैं पापको अपने से अलग न होने देंगी। पचन-नहीं प्रिये, मैं रण में जाते हुवे तुमसे मिलने आया हूं। मुझे माता पिता देखेंगे तो मेरी हंसी करेंगे । मुझे सूर्य निकलने से पहले यहां से चला जाना अत्यन्त आवश्यक है। . ( दोनों पलंग पर बैठ जाते हैं। पर्दा गिरता है ) ___ अंक द्वितिय-दृश्य छटा (रावण और वरुण आते हैं) . रावण-दुष्ट वरुण ! तूने मेरी आज्ञा का लोप किया है समझले अब तेरी मृत्यु निकट है। वरुण-ओ अभिमानी रावण, ना, युद्ध में तेरे जैसे कायरों का काम नहीं है । यह युद्ध भूमी वोरों के लिये है। रावण-तुम्हें अभी मेरे बल का पता नहीं है । सभी भूमी हिला डालूं, मैं अपने शक्ती घाणों से।
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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