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________________ द्वितीय भाग। (८३) नहीं तो इस घर की दीन अवस्था पर तो बिचार किया होता। पर्वत-माता धैर्य धरो। पिताजी कल्याण के मार्ग पर लग गये हैं। माता--दुष्ट तु यही चाहता होगा कि मैं अकेला रहकर मन माने ढोल बजाऊंगा । मुझे कहता है धैर्य घरो पिता को वहां छोड़ कर यहां भा बैठा हाय पतिदेव ! (रोती है) नारद-(पाकर) गुरु माता आप इतनी व्याकुल क्यों हो रही हैं ? हमारे गुरु सर्व शास्त्र पारंगत थे। वह संसार की बुरी भली अवस्था को पहचानते थे। उन्होंने अपना कल्याण करने के लिये वैराग्य को धारण किया है। कोई ऐसा कार्य नहीं है जिसे वह छोड़ गये हों । हमें तीनों को उन्होंने पूर्ण विद्वान बना दिया है । अपने बाद अपने प्रतिनिधी पर्वत को छोड़ गये हैं । जो कि इस समय हर प्रकार का भार सम्हाल सकता है। आपको तो उनका कल्याण सुन कर प्रसन्न होना चाहिये । हा, भगवन हमारे लिये वह समय कब आयेगा कि हम भी मुनि पद ग्रहण करके अपनी भात्मा की उन्नति करेंगे। माता--पुत्र नारद, तुम्हारे बचन सुन कर मुझे हर्षे होता है किन्तु जब पती का बियोग विचारती हूं तो (यांखों में आंसू लेकर ) मेरा कलेजा फटता है। उन्होंने
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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