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________________ (६८) श्री जैन नाटकीय रामायण। प्रशंसा करें । उनके ज्ञान में जैसा झलकता है उसी के अनुसार वह कथन कहते हैं। साधू-खैर यह भी सही । मैंने माना । किन्तु तुमने बाली को यहां तपस्या करते दिखाया है। वहां हमारे यहां तुलसीदासजी ने उसे रामचन्द्रजी के हाथ से मारा गया बताया है । कहिये कितना जमीन आसमान का फरक है। .. बृ०--साधूजी, हमारे जितने पुरुष भी हुवे हैं । वह सदा अपने धर्म पर कायम रहे हैं। और आजकल भी हिन्दुस्तानमें पुरुष अपने धर्म पर कायम हैं । यह मैं नहीं कहता कि पुरुष दुराचारी नहीं थे या नहीं हैं। वह सब कुछ थे और सब कुछ हैं। वह सर्प जैसे बाहर टेढ़ा मेढ़ा फिरता है। और अपने बिल में सीधा घुसता है उसी प्रकार थे । बाहर भले ही उन लोगों ने अत्याचार किये किन्तु घर में सदाचार पूर्वक रहे । सुग्रीव की रानी सुतारा को वह अपनी बेटी समझते थे। साधू-तो फिर राम ने बाली को मारा, क्या वृ०-नहीं झूठ नहीं है किन्तु उलट फेर है। साधू-वह क्या ? -वह 'आपको अभी मालूम पड़ जायगा । आज हम केवल इतनी ही लीला दिखाकर समाप्त करेंगे। आज हम यह दिखादेंगे कि वास्तव में यह क्या मामला है। ATTA
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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