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________________ HM जम्बूस्वामी चरित्र हे भागिनेय ! तुम माने पास की लक्ष्मीको छोडकर मागेकी इच्छाको करके मत जामो नहीं तो हास्यके पात्र होंगे। जम्बूकुमारकी कथा। तब फिर जंबूकुमार अपने दांतोंकी कातिको चमकाते हुए कहने लगे एक व्यापारी जहाजका काम करता था। एक दिन जहाज. पर चढकर वह दूपरे द्वीपमें गया। वहां सर्व माझ वेचकर एक रत्न खरीद लिया । तब वह बनिया अपने घरको लौटा। मार्गमें भरने हाथमें रतन रखकर व बारबार देखकर यह विचारने लगा। समुद्रतट पहुंचकर मैं इस महान रत्नको बेच डालूंगा और हाथी घोडे बादि नाना प्रकारकी वस्तु खरीदूंगा, फिर राजाके समान होकर अपने नगरको जाऊंगा । लक्ष्मीसे पूर्ण हो मंत्री व नौकर चाकर रवगा। मैं घरमें रह कर स्वस्त्रीके साथ सुखसे जीवन विताऊंगा। मुपहराते हुए स्त्रियोंको देखूगा। पुत्र पौत्रादि होंगे उनको देख कर प्रसन्न हूंगा। ऐसा मनमें विचारता जारहा था कि पापके उदयसे व प्रमादसे वह रतन हाथसे समुद्र में गिर पड़ा, तब उसके मनके सब मनोरथ वृथा रह गए। रतन न दीखने पर हाहाकार करके रोने लगा। हे मामा ! मैं इस तरह नहीं हूंगा कि धर्मके फलको छोड़कर वर्तमान विषयभोगों में फंसकर दुःख भोगू।
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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