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________________ जम्बूस्वामी चरित्र ठगनेके लिये वोला कि हे प्रिये ! वस्त्राभूषणादि सब मुझे दे दे, मैं पहले पार जाकर एक स्थानमें इनको रखकर पीछे भाकर तुझे अपने कंधे पर चढ़ाकर भले प्रकार पार उतार दूंगा । स्वयं वह धून थी ही, उसने उस धूर्त का विश्वास कर लिया । उसने पति जानकर अपने संव गहने कपड़े उतार कर दे दिये । आप नग्न होकर इस तटपर बैठी रही। वह दुष्ट ठग नदी पार करके लौट कर नहीं माया । यह मलेली यहां बैठी रही, तब स्त्रीने वहा-हे धूर्त ! तु लौट कर भा। मुझे छोड़कर चला गया ? उस ठगने कहा कि तु. बड़ी पापिनी है। वहीं बैठी रह । इतने में एक शृगाल सागया। जिसके मुखमें मांसपिंड था, पूछ ऊंची थी। उस शृगालने पानीमें उछलते हुए एक मछलीको देखा । तब वह अपने मुखके मांसको पटाकर महा लोमसे मछली के पकडनको दौडा । इतने में वह खूब गहरे पानी में चला गया, तब वह कोभी स्यार उसी मांसको लेकर दूसरे वनमें भाग गया, वह स्त्री ऐसा देखकर इंसी कि स्यार.. को मछली नहीं मिली। उसने विना विचारे काम किया। स्वाधीनमांसको छोडकर पराधीन मांस लेने की इच्छा की । वह धूर्त चोर भी. दुसरे पारसे कहने लगा-हे मूर्खे। तुने क्या किया, तृ अपनेको देख। यह पशु तो अज्ञानी है, हित अहितको नहीं जानता है, तु कैसी मज्ञानी हैं कि अपने पतिको मारकर दूसरे के साथ रति करने लगी। इतना कहकर वह धूर्त ठग अपने घर चला गया तब वह स्त्री लज्जाके मारे नीचा मुख करके बैठ रही। २७१
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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